Wednesday 28 December 2011

kuch tham sa gaya hai aaj

कुछ थम सा गया है आज
आज न चाहकर भी रो पड़े हम
हम रुक से गए
गए   थे अपने ही हमे छोडके
छोडके अगर जाना ही था
था क्यूँ थामा हमारा हाथ
हाथ अब छूट  ही गए तो
तो बनेगी कैसे अपनी बात
बात बन तो जाती मगर
मगर हर बार आ ही जाता
जाता है इक पलछिन पल
पल जो हमें जीने न दे
दे न हमे मरने की इजाज़त
इजाज़त मिल तो जाती पर
पर कुछ थम सा गया है आज

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