Friday 9 December 2011

nayi umeed

बदलते रहे करवटें बिस्तर पर यूं
 नींद हो गयी कहीं ओझल
उड़ गयी कुछ देर हमे सपने दिखा कर
फिर कर गयी वोह हमे बोझिल


करते रहे याद वोह पुरानी बातें
जो रखी थी कहीं तकिये के सिरहाने
जब बंद आँखें खोली तो
चले फिर हम खुद को मनाने 

तकलीफ तो हुई बहुत 
पर दिल के अरमान सब टूट गए
मुट्ठी खुली और
बचे रेत के घर भी फूट गए

चलो अब ले चले इस दिल को वहां
जहाँ न हो कोई झूठे वादे
ज़िन्दगी पल में हो सकती है आसां
अगर फिर हो चले हम  सादे

मना लेंगे दुनिया को हम
बस साथ जो थोड़ा देदो तुम
आएगी फिर से चैन की नींद
फिर भर  आयेगी नयी उम्मीद

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