Monday 1 October 2012

कैसे सच होंगे यह सपने

कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 

कुछ नीले आकाश के जैसे 
कुछ इमली से खट्टे
 कमसिन हैं नादाँ है
 हों  जैसे छोटे से बच्चे 

कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 

मन बदले कभी बदले यह 
अपनी बोझिल सी पोशाख 
डरती हूँ बस खो न जाए 
बन कर काली राख़ 

कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 

तितली हैं ये हैं ये बादल 
कुछ बारिश से गीले
कभी  ये ओढ़े चादर ताने 
बनते रेत के टीले 

कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 

इन्द्रधनुष से रंग बिरंगे 
कौवे जैसे काले 
कभी नचाये कभी रुलाये 
कभी चलें ये चालें 

कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 


मैं तो पूछूं खुदसे  ये बात 
क्या देंगे ये तेरा साथ 
क्या चलेंगे बिना थके ये 
या होंगे ये बस बेबाक 

बात मनवा कर
 मुझे रुलाकर 
चल देंगे फिर 
किसी के साथ 
फिर भी आता यही ख्याल 
क्यों न पूछूं मैं यही सवाल 


कुछ  तो सोचा होगा तुमने 
कैसे सच होंगे यह सपने 




1 comment:

  1. Sapne pure tabhi hote hai jab aap unhe mehsoos karte ho....apnate ho....

    Ishwar kare aapki manokaamna poorn ho

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