Wednesday 10 October 2012

tadap

जागी है इक तड़प सी 
कुछ रात है 
कुछ सुबह सी 

बस इतना तो चल जाता पता 
की क्या  यह प्यास है 
या है प्यार की नरमी 
जलता है सारा बदन 
न सर्द हवा न है गर्मी 



कोशिश की मैंने कि 
 देखूं मैं आइना 
नज़र तो आता
 किसी का चेहरा 
पकड़ा आँचल
 किसी ने जैसे 
फिर अपनी
 बाँहों में भरके 
खोली जो मैंने 
अपनी आँखें 
मूंदी सी मिली
 वोह सपने बुनती 





कुछ बातें थी अनकही 
कुछ बातें थी कही  भी 
कुछ था अधूरा सा 
उनका चेहरा 
कुछ था अपने जैसा भी 
रंग रूप जागा सा था 
पर थी कहीं उसमे सादगी 
वैसे भी हम दिल दे बैठे थे 
फिर उसने भी हामी भर ही दी 


जागी है इक तड़प सी 
कुछ रात है 
कुछ सुबह सी 


जब नींद खुली 
जब आँख लगी 
जब आँख लगी 
जब नींद खुली 
बस जीली हमने 
ज़िन्दगी 


जागी है इक तड़प सी 
कुछ रात है 
कुछ सुबह सी 




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