Sunday 29 July 2012

आ सीने से लगा लेती हूँ मैं

पोंछ  दो  पसीने  की टपकती  बूँदें 
आ सीने से लगा लेती हूँ मैं 


क्यों डूबे हो इन बदहवास खयालों से 
आ सीने से लगा लेती हूँ मैं


शिकन न कोई आये माथे पे तेरे आये 
तू कभी न किसी से न मात खाए 
यही दुआ निकलेगी मेरे लबों से 
आ सीने से लगा लेती हूँ मैं 


ग़म के अंधेरों से चलूँ लेकर  तुझे दूर 
समेत लूं अपने आँचल में 
इक छोटे बच्चे की तरह 
आज फ़िर  मर मर के जी ले मेरी जान 
आ सीने से लगा लेती हूँ 


चाँद से दूर कोई घर बना कर 
अपने हाथों में  तेरी मेहँदी लगा कर 
फिर चुरा लूंगी में तेरे सारे ग़म 
आ सीने से लगा लूंगी मैं 


कुछ  थोड़ी देर जी लेने दे मुझे भी 
आज तेरी आँखों से पी लेने दे मुझे भी 
सिमट कर सारे जहाँ का प्यार 
कर के इक सागर तैयार 
लहरों मैं डूब कर हूँ जाएँ हम उस पार 
आ सीने से लगा लेती हूँ मैं 

1 comment:

  1. kabhi maajhi fansa majdhar mein
    kabhi lehrein fanah hui saahil pe
    wo aadat se apni majboor the
    toofaano ko paas bulaate rahe

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