Wednesday 4 July 2012

चुप्पी सी सधी है दोनों ओर

चुप्पी सी सधी है दोनों ओर
न हम कुछ कहेंगे न वो ही 
जानते -बूझते झूलते हैं 
इन दर्द भरे झूलों पर 
कहाँ गए वो सावन के मदमस्त गीत ?
चुप्पी  सी सधी है दोनों ओर 
न हम कुछ कहेंगे न वो ही ....

माना था हमने आपको खुदा से भी ज्यादा 
कहा था दुनिया से जुदा न होंगे कभी 
झूठे पड़  गए अपने ही वादों पर 
सूख गए वो जंगल जो बोये थे कभी 
न जाने बहार फिर आये न आये 
हम गलत होंगे साबित या फिर सही 
जानोगे  जब हम तुम्हे ही हैं चाहते 
कहेंगे हम भी नहीं और 
सुनोगे तुम भी नहीं ....

हाथ पकड़ कर भर लो बाँहों मैं अब
 भूल जाएँ अपने सारे ग़म 
पर 
चुप्पी सी सधी है दोनों ओर
न हम कुछ कहेंगे न वो ही 

2 comments:

  1. It's always about sacrificing that mild ego and breaking the ice which can solve problems. The stupidity of man forbids him from doing so!! Amazing

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