Tuesday 26 April 2016

Aadhe -adhure

कुछ रात है
 आधी आधी
कुछ बातें मेरी
आधी-अधूरी सी

चाँद भी निकला है
तफरी पर
अपने घर से
मिलने शायद
 अपनी किसी और
 चांदनी को


फिर  मेरा चाँद मुझसे यूँ दूर क्यों  है ?
फिर मेरा दिल  यूँ मजबूर क्यों  है?

फिर होगी सुबह
जब चढ़ेगा सूरज
तब  चाँद आएगा
लौट के अपने घर को
खोलूंगी दरवाज़ा फिर
उसकी ही दस्तक पर
फिर होगी  मेरी रात पूरी
फिर होगी  पूरी  मेरी सुबह भी
 रात और  दिन का कोई ठिकाना न होगा !
चाँद के पास फिर कोई बहाना  न होगा !



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