आज फिर बात चली मेरी तुम्हारी
फिर से कुछ खलिश सी दिल में हुई
याद आये वोह दिन सुहाने
और न जाने क्यों इक हूक सी उठी
आज फिर बात चली मेरी तुम्हारी
पुरानी दास्तान जो अभी भी है याद
दास्ताने ग़म भी है कुछ शामिल
वही तन्हाई का था आलम मिलन के बाद
आज फिर बात चली मेरी तुम्हारी
पलट कर जब फिर से जो तुमने देखा
क्यों फिर से खिच गयी आखिर
दूरियों की यह रेखा
फिर से वोह शाम क्यों न आई
फिर से वह प्यार भरी बातें न दोहराई
क्यों न खीचा तुमने फिर से अपने पास
शायद इसिलिए हूँ मैं आज उदास
Right selection of words
ReplyDeletenice one ......
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