आज देखा चाँद को
अपनी ओर देखते हुए
कुछ वोह भी हैरान था
और कुछ मैं भी पशेमान
मैंने कहा की देखता क्यों
है इस हैरानी से
क्या तू भी मेरे जैसा
अकेला है आज रात
वोह हंसके बोला मुझसे
क्या बात करती हो
क्या मेरी तरह भी
कोई तन्हा हो सकता है
मैं लटका हूँ सदियों से
अन्तरिक्ष में ,
कभी घटता हूँ ,कभी बढ़ता हूँ
कभी तो किसी को नज़र भी नहीं आता
मुझसे क्या तुलना करती हो अपनी
मैं हूँ एक बेजान बूढा चेहरा
और तुम रोज़ ही जाती हो
बुढापे की ओर
मेरे दर्द को तुम क्या समझोगी
तुम नादान हो आखिर
अनजान हो मेरे कुरूप रूप से
कभी सोचो तो मेरी झुर्रियां कबसे हैं
कभी तो ख़ूबसूरत थी तुम
कभी तो थे तुमपर बहुत से फ़िदा
मैं तो हूँ इक त्रिशंकुं की तरह
जिसका ना ओर है न छोर
मेरा कहा मानो
हंसा करो रोज़
क्योंकि तुम तो चली जाओगी जल्द ही
रह जाऊँगा मैं फिर से अकेला
अपनी ओर देखते हुए
कुछ वोह भी हैरान था
और कुछ मैं भी पशेमान
मैंने कहा की देखता क्यों
है इस हैरानी से
क्या तू भी मेरे जैसा
अकेला है आज रात
वोह हंसके बोला मुझसे
क्या बात करती हो
क्या मेरी तरह भी
कोई तन्हा हो सकता है
मैं लटका हूँ सदियों से
अन्तरिक्ष में ,
कभी घटता हूँ ,कभी बढ़ता हूँ
कभी तो किसी को नज़र भी नहीं आता
मुझसे क्या तुलना करती हो अपनी
मैं हूँ एक बेजान बूढा चेहरा
और तुम रोज़ ही जाती हो
बुढापे की ओर
मेरे दर्द को तुम क्या समझोगी
तुम नादान हो आखिर
अनजान हो मेरे कुरूप रूप से
कभी सोचो तो मेरी झुर्रियां कबसे हैं
कभी तो ख़ूबसूरत थी तुम
कभी तो थे तुमपर बहुत से फ़िदा
मैं तो हूँ इक त्रिशंकुं की तरह
जिसका ना ओर है न छोर
मेरा कहा मानो
हंसा करो रोज़
क्योंकि तुम तो चली जाओगी जल्द ही
रह जाऊँगा मैं फिर से अकेला
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