कहता है मन मेरा उड़ जाऊं
मैं हवाओं से भी आगे
न कोई हाथ थामे ,
न कोई भी मुझे रोके
नज़र पड़े जहां
वहां हो खुला
कोई इक मंज़र
चाहे हो आसमा
चाहे समंदर
न मैं हूँ ,
न तू हो
बस र ह जाए
हम इक दूजे मैं खोकर
तितली सा रंग बिरंगा फिरता
मस्त हवा का गीला झोंका
छू जाए मेरे बदन को
बादल सी बेहिसाब
मुहब्बत लुटा दूं
तुझपे मर जाऊं
जी जा ऊं मैं
गीली मिटटी की खुशबू
महके मेरे सारे यौवन पे
चहकती बुलबुल सी बैठूं
गा लूं कोई प्यार का गीत
काफिला हो न हो साथ मेरे
तेरी यादों को पिरो लूं
आ मेरे मनमीत
Posted
by Smita Sharm
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